गीता का अध्ययन संगठनात्मक प्रबंधन, वित्तीय अनुशासन और रणनीति निर्माण के लिए हो – प्रो सुरेश कुमार अग्रवाल
अजमेर, 1 दिसंबर – महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के योग एवं मानवीय चेतना विभाग द्वारा राष्ट्रीय सेवा योजना के सहयोग से मोक्षदा एकादशी के पावन अवसर पर गीता जयंती समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में आधुनिक जीवन में कर्म योग की प्रासंगिकता पर विशेष चर्चा हुई।
मुख्य अतिथि एवं वक्ता: कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल, कुलसचिव कैलाश चंद्र शर्मा, विवेकानंद केंद्र के कार्यपद्धति प्रमुख डॉ. स्वतंत्र कुमार शर्मा तथा अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।
कुलगुरु प्रो. अग्रवाल ने विलियम डुरांट के कथन से गीता की वैश्विक महत्ता स्थापित करते हुए कहा कि गीता का उदय तब होता है जब मन में टूटन, विश्वास में गड़बड़ी और कर्म करने की इच्छा नहीं रहती। उन्होंने समत्व योग के महत्व को समझाया और युवाओं से गीता का अध्ययन संगठनात्मक प्रबंधन, वित्तीय अनुशासन और रणनीति निर्माण के लिए करने का आह्वान किया। अपने व्यक्तिगत अनुभव से उन्होंने बताया कि गीता श्लोकों की ध्वनि शरीर और मन पर गहरा सकारात्मक प्रभाव डालती है।
डॉ. स्वतंत्र शर्मा ने गीता को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के केंद्र में भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल बताया। उन्होंने ठाकुर रामकृष्ण परमहंस की उपमा "अमी यंत्र तुम यंत्री" से कर्म योग के सार को समझाया और मारुति सुजुकी में गीता पाठ से बढ़ी उत्पादकता का उदाहरण दिया। स्वामी विवेकानंद के कथन "गीता वीरों का शास्त्र है" को उद्धृत करते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय में नियमित गीता स्वाध्याय सत्र का प्रस्ताव रखा।
कुलसचिव श्री कैलाश चन्द्र शर्मा ने गीता को सभी उपनिषदों का सार बताते हुए सुंदर रूपक प्रस्तुत किया—सभी उपनिषद गायें हैं, श्री कृष्ण ग्वाले हैं, अर्जुन बछड़ा है और हम सभी गीता रूपी अमृत के भोक्ता हैं। इसी अद्वितीय ज्ञान के कारण श्री कृष्ण को जगद्गुरु कहा गया है।
समारोह का शुभारंभ डॉ. लारा शर्मा ने ओम ध्वनि और गीता श्लोकों के सामूहिक पाठ से किया। प्रो. मोनिका भटनागर ने स्वागत तथा डॉ. जयंती ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर योग प्रभारी डॉ. आशीष पारीक, प्रो सुब्रतो दत्ता, प्रो सुभाष चन्द्र, प्रो नरेश धीमान सहित बड़ी संख्या में अतिथि शिक्षक, अधिकारी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे